।। श्रीश्रीराधादामोदरौ विजयतेतमाम् ।।
श्रीदामोदराष्टकम्
श्रीसत्यव्रतमुनि प्रोक्तम्
श्रीकृष्णद्वैपायन-वेदव्यास-विलिखितं
परमपूज्यपाद-श्रीगौड़ीय-वैष्णवकुल-मुकुटमणि
श्रील-श्रीयुक्त-सनातन-गोस्वामि-कृतया
दिग्दर्शिनी-नाम्नी-टीकया सहितम्
अन्वय-अनुवाद-टीकानुवाद-दिग्दर्शिनीवृत्तिसहितम्
श्रीगौड़ीय-वेदान्त-समितेः प्रतिष्ठापकवराणां
नित्यलीलाप्रविष्ट-ॐ-विष्णुपाद-परमहंस-स्वामिनां
श्रीमद्भक्तिप्रज्ञान-केशव-गोस्वामि-महाराजानां
पादत्राणावलम्बकेन परिव्राजकाचार्येण
(त्रिदण्डिस्वामिना)
श्रीश्रीमद्भक्तिवेदान्त-नारायण-गोस्वामि-महाराजेन
सम्पादितम्
अचिन्त्य-अनन्त-शक्तिमान स्वयंभगवान् श्रीकृष्णचन्द्र माता यशोदाके दामबन्धनको स्वीकारकर उनके विशुद्ध-वात्सल्य-प्रेमरस-निर्यासका सम्पूर्ण रूपसे आस्वादन करते हैं और जगतमें अपनी भक्ताधीनताका
चरम परिचय प्रदान करते हैं। वह परम मनोहर श्रीदामबन्धन-लीला कार्त्तिक शुक्ला प्रतिपदाके दिन प्रकट करते हैं। परमधन्य कार्त्तिक मासका ‘दामोदर’ नामसे प्रसिद्धि लाभ करनेका यही प्रधान कारण है।
वैष्णव-स्मृतिशास्त्र श्रीहरिभक्तिविलासके प्रणेता आचार्यपाद श्रीगोपालभट्ट गोस्वामीने कार्त्तिक-व्रत पालन करनेके प्रसङ्गमें कार्त्तिक मासमें प्रतिदिन श्रीराधादामोदरका पूजार्चन एवं ‘श्रीदामोदराष्टक’ नामक स्तोत्र
पाठकी विधिका निर्देश किया है।
सूचीपत्र: नमामीश्वरं सच्चिदानन्दरूपं, रुदन्तं मुहुर्नेत्र-युग्मं मृजन्तं, इतीदृक् स्वलीलाभिरानन्द-कुण्डे, वरं देव! मोक्षं न मोक्षावञध वा, इदन्ते मुखाम्भोजमव्यक्त-नीलै, नमो देव! दामोदरानन्त! विष्णो!, कुबेरात्मजौ बद्ध-मूर्त्त्यैव यद्वत्, नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
Śrī Satyavrata Muni, written down by Śrī Kṛṣṇa Dvaipāyana Vedavyāsa
Commentaries by Śrī Sanātana Gosvāmī and Śrī Śrīmad Bhaktivedānta Nārāyaṇa Gosvāmī Mahārāja
For thousands of years, devotees have sung Śrī Dāmodarāṣhṭakam, especially in the revered month of Kārtika.
These eight verses mark the profound blossoming of Śrī Satyavrata Muni’s love for Śrī Dāmodara, as he prays, “Please appear before me in Your beautiful, eternal form as a young cowherd-boy, and grant me the perfection of life.” The true meaning of this prayer remained mostly hidden until the late 1500s, when Śrīla Sanātana Gosvāmī wrote his elucidating commentary. Śrī Śrīmad Bhaktivedānta Nārāyaṇa Gosvāmī Mahārāja’s lively and poignant supplementary commentary serves to make these essential meanings even more accessible to us.
21cm x 14cm x 0.6xm
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