|| श्रीश्रीगुरु-गौराङ्गो जयतः ||
श्रीश्रील सनातन गोस्वामीपाद विरचित
श्रीश्रीबृहद्भागवतामृतम्
प्रथम-खण्ड
(श्रीभगवत् कृपा-सार निर्द्धारण)
तत्कृत दिग्दर्शिनी टीका सहित
श्रीगौड़ीय वेदान्त समिति एवं तदन्तर्गत भारतव्यापी श्रीगौड़ीय मठोंके
प्रतिष्ठाता, श्रीकृष्णचैतन्याम्नाय दशमाधस्तनवर
श्रीगौड़ीयाचार्यकेशरी नित्यलीलाप्रविष्ट
ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशतश्री
श्रीमद्भक्तिप्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराजजीके अनुगृहीत
त्रिदण्डिस्वामी
श्रीश्रीमद्भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज
द्वारा अनुवादित एवं सम्पादित
( श्लोकानुवाद तथा दिग्दर्शिनी टीकाके भावानुवाद सहित )
प्रस्तुत श्रीबृहद्भागवतामृत ग्रन्थ दो खण्डोंमें विभक्त है-पूर्व और उत्तर। पूर्व-खण्डका नाम-श्रीभगवत् कृपासार निर्धारण खण्ड तथा उत्तर खण्डका नाम-श्रीगोलोक-माहात्म्य निरूपण खण्ड है। पूर्व खण्डमें (१) भौम, (२) दिव्य, (३) प्रपञ्चतीत, (४) भक्त, (५) प्रिय, (६) प्रियतम और (७) पूर्ण कृपापात्र-ये सात अध्याय हैं तथा उत्तर खण्डमें (१) वैराग्य, (२) ज्ञान, (३) भजन, (४) वैकुण्ठ, (५) प्रेम, (६) अभीष्ट-लाभ (७) जगदानन्द-ये सात अध्याय हैं।
समस्त वेद, वेदान्त, पुराण, इतिहास आदि शास्त्रोंका सारस्वरूप श्रीमद्भागवत है, उस श्रीमद्भागवतका भी मन्थनकर यह ग्रन्थ प्रकटित किया गया है। इसलिए इसका नाम श्रीभागवतामृत है। इस ग्रन्थमें भगवद्भक्ति सम्बन्धीय सभी विषय स्थान-स्थान पर प्रकाशित हुए हैं। इसका मूल श्रीजैमिनि-जनमेजय संवाद, श्रीपरीक्षित्-उत्तरा संवादके
आधार पर लिखा गया है। अर्थात् श्रीशुकदेव गोस्वामीके मुखसे श्रीमद्भागवत सुननेके बाद और तक्षक आगमनसे पहले श्रीपरीक्षितकी माता श्रीउत्तरादेवीने उनसे यह प्रश्न किया था “हे वत्स! तुमने श्रीशुकदेव गोस्वामीसे जो कुछ सुना है, उसका सारस्वरूप सरल सहज बोधगम्य भाषामें कहो।” इसी प्रश्नसे यह ग्रन्थ प्रारम्भ होता है।
इस ग्रन्थके दो खण्ड हैं। प्रत्येक खण्डमें एक-एक इतिहास है। ग्रन्थकारने मात्र ये दो इतिहास ही नहीं लिखे हैं, बल्कि इनके द्वारा श्रीश्रीराधाकृष्ण युगलस्वरूपकी उपासनाके लिए ही उनके स्वरूप-तत्त्वका पूर्णरूपसे विवेचन किया है। पहले खण्डमें श्रीराधिकाजीका स्वरूपतत्त्व वर्णन करते हुए इस प्रकार इतिहास आरम्भ किया गया है।
दूसरे खण्डमें ग्रन्थकारने श्रीशालग्राम भगवान्से लेकर श्रीनन्दनन्दन तक भगवान्के सभी स्वरूप और अवतारोंका विवेचन किया है। इस इतिहासको गोपकुमार द्वारा आरम्भ किया गया है, जिनको गुरुके द्वारा गोपालमन्त्र प्राप्त हुआ था और जिसके प्रभावसे उनको सब लोकोंमें आने-जानेकी बाधा रहित सुविधा हो गयी थी।
Srila Sanatana Gosvami’s Sri Brhad-bhagavatamrta occupies a special place in the realm of Vaisnava literature. It is unparalleled in its delineation of siddhanta, rasa, bhava and lila. Its glories are limitless, and it is without question one of the most beneficial books for the progressive sadhaka. It is divided into two parts, and both parts tell the story of parivrajaka; that is, one who refuses the comforts of a permanent residence and constantly wanders in search of the essence of Life.
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